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यौन शिक्षा की अपेक्षा आवश्यकता है चरित्र निर्माण की शिक्षा देने की .जंक्शन फोरम.

vande matram
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” जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सकें ,मनुष्य बन सकें, चरित्र गठन कर सकें और विचारों का सामंजस्य कर सकें ,वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है.”
स्वामी विवेकानंद.
आज समाज में आए दिन हो रहे यौन अपराधों और बलात्कारों के परिणामस्वरूप यह प्रश्न उठ रहा है कि विध्यालयों में यौन शिक्षा दी जाए या नही. कुछ इसके समर्थन में हैं तो कुछ इसके समर्थन में नहीं हैं. जो विध्यालयों में यौन शिक्षा देने का समर्थन कर रहे हैं उन्हें लगता है कि इस प्रकार समाज से यौन दुराचारों और बलात्कारों को होने से रोका जा सकता है. परन्तु सत्य ये है कि ऐसा कोई परिवर्तन नहीं होगा.अगर किसी परिवर्तन कि आशा की जा सकती है तो केवल प्राचीन परम्परागत नैतिक मूल्यों को नैतिक शिक्षा के माध्यम से पुनर्स्थापित करके और इसी से हम एक आदर्श और समृद्ध समाज का निर्माण का सकते हैं जिसमे ऐसे अपराध नहीं होंगे. और ऐसे समाज कि स्थापना के लिए
आज अगर किसी शिक्षा की आवशकता है तो वो है चरित्र निर्माण की शिक्षा नैतिक शिक्षा की. यह वो शिक्षा है जो बालकों के आचार- विचारों को शुद्ध करेगी.

आज समाज में बढ़ रहे नकारात्मक विचारों और अपराधों का समाधान कहीं और नही भारत के ही उस स्वर्णिम काल में छुपा है जब संस्कारों का आभाव नही था.तब मनुष्यों में बड़ों के प्रति आदर छोटों के प्रति स्नेह और परस्पर भाईचारा व्याप्त था. उन्ही संस्कारों की देन हैं स्वामी विवेकानंद ,रामानुज , नानक, चेतन्य,कबीर ,रानी लक्ष्मी बाई, शुभाष, भगत, ऐसे कितने ही नाम जो हमारे महान पूर्वजों का स्मरण कराते हैं . ये उन्हें मिले संस्कार ही थे जो इन सबके व्यक्तित्व के निर्माण की नींव थे. ये संस्कार उन्हें उनके माता- पिता ,परिवार , गुरुजनों और समाज से मिले. घर में माताएं अपने बच्चों को अपने पूर्वजों और महापुरषों की कहानियाँ सुनाया करती थीं और उनके माध्यम से नैतिक शिक्षा दिया करती थीं. विध्यालयों में शिक्षक सभी विषयों के साथ नैतिक शिक्षा देते और बच्चों के चरित्र निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे. आस पास का सामाजिक वातावरण भी इसमें काफी हद तक सहायक था. क्योंकि उस समय आज जैसा सामाजिक वातावरण नही था. और यही कारण था कि समाज में विचारों की स्वच्छता विद्धमान थी.

आज का भारत उस समय के भारत से बहुत आगे निकल गया है ख़ुशी की बात है भारत बहुत विकसित हो गया है परन्तु इतना हर्ष का विषय भी नहीं क्योकि इस विकास ने कहीं ना कहीं व्यक्ति के आदर्श और संस्कार छीन लिए हैं मनुष्य का परस्पर भाईचारा अपनों के प्रति आदर स्नेह कम हुआ है. व्यक्ति सामाजिक होने की अपेक्षा एकांकी होता जा रहा है. भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों को भुला कर पाश्चात्य संस्कृति को अपनाता जा रहा है और जिसका प्रभाव उसकी जीवन शैली पर भी पड़ा है.इसी पाश्चात्य जीवन शैली और संस्कृति की शिक्षा अभिभावक अपने बच्चों को दे रहे हैं और देना भी चाहते हैं. भारतीय संस्कृति इसके जीवन मूल्यों के विषय में बताने का आज के माता पिता के पास समय है और ना ही इसे वो आवश्यक समझते हैं. इस देश में ऐसी माताएं भी हुई हैं जिनकी शिक्षा ने भारत को महान रत्न प्रदान किए. माता भुवनेश्वरी ने स्वामी विवेकानंद ,माता जीजा बाई ने शिवाजी, माता विध्यावती ने भगत सिंह इस देश की माटी को दिए .ऐसे ही कितने माता पिता और गुरुजनों ने महान पुत्र और पुत्रियों से इस देश को सुशोभित किया है.

आज की बात करें तो आधुनिक शिक्षा पद्धति पहले की शिक्षा से बहुत आगे है. परन्तु साथ ही ये भी सत्य है और जिस से हम मुख नही फेर सकते कि ये आधुनिक शिक्षा चरित्र निर्माण करने में असमससर्थ है. क्या हमारे बच्चे हमारे इतिहास और अपने महान पूर्वजों और उनके योगदान से भली भाँती परिचित है इसमें कोई शंका नही क्योकि इसका उत्तर हम सभी जानते है कि हमारे बच्चे इस सबसे परिचित नही हैं. इसका कारण यह है कि आज इसकी आवश्यकता नहीं समझी जाती इसीलिए ना ही घर में माता पिता औरना ही विध्यालयों में शिक्षकों द्वारा इसकी शिक्षा दी जाती है. विध्यालयो में नैतिक शिक्षा जिससे बच्चों का चरित्र निर्माण हो सके ऐसा कोई विषय नहीं है और ना ही अपने महापुरुषों की जीवनियाँ उनका योगदान इस देश को क्या था ऐसी जानकारी देने वाला पाठ्यक्रम है. आज के बच्चे देशी और विदेशी फिल्मों के अभिनेता और अभिनेत्रियों के विषय में तो पूरी जानकारी रखते है और उन्ही का काफी हद तक अनुसरण भी करते है. लेकिन अगर उनसे भारत के सच्चे हीरो रहे किसी भी व्यक्तित्व के विषय में पूछा जाय तो शायद ही ठीक जानकारी दे पाए और जो जानकारी रखते है उनकी संख्या बहुत कम होगी. हम जब उन्हें अपने सच्चे वीरो की जानकारी देंगे तो उनपर इसका प्रभाव अवश्य ही पड़ेगा और वो इन सबसे नैतिक मूल्यों को भी अपनाएंगे.
हम आज के बच्चों को दोष नहीं दे सकते क्योकि दोष हमारा और हमारे इस सामाजिक वातावरण का है. बच्चे तो उस अनगढ़ कच्ची मिटटी कि तरह हैं जिसे कुम्हार अर्थात माता- पिता और शिक्षक उसे जैसा ढालेंगे वो वैसा ही बनेगा. पर दुर्भाग्य है कि आज अगर माता पिता और शिक्षकों द्वारा अगर शिक्षा दी जाती है तो केवल अंधाधुंध दौड़ में भागने की. सब दौड़ रहे हैं तुम भी दौड़ो वरना पीछे रह जाओगे . ये आधुनिक शिक्षा चरित्र निर्माण ना कर ऐसे मनुष्यों का निर्माण कर रही है जो एक मशीन से अधिक कुछ नहीं. कैसे दूसरों को पछाड़ आगे निकलें कैसे अधिक से अधिक धन कमायें और सुख सुविधाओं से भरा भौतिक जीवन जियें. ये अंधी दौड़ ही मनुष्यों में नकारात्मक भावनाएं भी लाती हैं. इन नकारात्मक भावनाओं का ही परिणाम है कि जिस युवावस्था में व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से सबसे अधिक सक्षम और शक्तिशाली माना जाता है वहीं आज का युवा नशे जैसी गलत आदतों में धंसता जा रहा है. आज हमारे बच्चों और युवाओं में सहनशक्ति कम हो रही है डिप्रेशन का शिकार हें और जीवन से हार मान आत्महत्या तक कर लेते हैं.

आस पास का सामाजिक वातावरण भी इसके लिय जिम्मेदार है . यदि एक बच्चा निरंतर बुरे शब्द सुनता रहे ,बुरे विचारों को सुने , बुरे कर्म देखे तो इन सबका प्रभाव तो उसपर पड़ेगा ही. बिना उसके जाने ही ये बुरे शब्द विचार और कर्म उसके समस्त विचारों और कार्यों पर प्रभाव डालेंगे ही. आज टी वी,फिल्मो उनके गानों ,इंटरनेट का बच्चो पर असर पड़ता है. आज अगर बच्चा फिल्मों के बेहूदा और फूहड़ गानों पर नाचता है तो माता पिता खुश होते है और अपना सहयोग भी इस काम में देते है क्योंकि उनके लिए यह सब आम बात है. उन्हें ये समझना चाहिय कि कहीं ना कही ये सब भी बच्चों को प्रभावित करता है. इसलिय आज अश्लीलता वैसे ही कम नहीं परोसी जा रही है जो और यौन शिक्षा दी जाय पहले ही इन सबका प्रभाव बच्चो पर बहुत पड़ रहा है. क्या पहले समय में भी घर और विध्यालयो में यौन शिक्षा ही दी जाती थी जो समाज में बलात्कार जैसे अपराध नही होते थे . कदापि नही केवल नैतिक शिक्षा ही थी जिसके कारण समाज में ऐसे अपराध नहीं होते थे.

माता पिता और शिक्षक बच्चों के गुरु होते हैं अतः ये आवश्यक है कि घर और विध्यालय बच्चों में आदर्शों को संस्कार रूप में बच्चों में स्थापित करें . बचपन से ही उनमें ईश्वर आस्था जगाएं और नैतिक शिक्षा दें यह उनके चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और इस भावी पीढ़ी इस देश के भविष्य में सत्य , दया, त्याग, न्यायप्रियता, भाईचारा ,और देशप्रेम आदि गुणों को विकसित करेगा. और तब वो भारत बनेगा जो अपनी संस्कृति अपने जीवन मूल्यों के साथ और समाज में शांतिप्रियता बनाए रखकर प्रगति करेगा .

अतः आज अगर विध्यालयों में किसी शिक्षा की आवश्यकता है तो वो है नैतिक शिक्षा की जिससे हमारे बच्चों का चरित्र निर्माण होगा. जो भारत को अपराध मुक्त कराने में भूमिका निभायेंगे. स्वामी विवेकानंद जी भी ने तो कहा है कि ” देश के प्रत्यॆक घर को हम सदावर्त में भले ही परिणत कर दें, देश को अस्पतालों से भले ही भर दें; परन्तु जब तक मनुष्य का चरित्र परिवर्तन नहीं होता तब तक समाज में दुःख कलेश बना ही रहेगा.”

वन्देमातरम
दीपा सिंह .

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